आज की इस पोस्ट में हम बात करने वाले हैं प्रायदीप (Peninsula) के बारे में बात करने वाले हैं प्रायदीप (Peninsula) क्या हैं, प्रायदीप (Peninsula) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले हैं.
प्रायदीप (Peninsula)
प्रायदीप (Peninsula) तीनो और से जल से घिरा होता हैं.
प्रायदीप (Peninsula) का वर्गीकरण | ||
पहाड़ियां | पठार | तट |
1. अरावली
2. विध्यांचल 3. सतपुड़ा 4. महादेव व मैकाल 5. पश्चिमी तट 6. पूर्वी घाट 7. नीलगिरी 8. दक्षिण की पहाड़ियां |
मालवा
छोटा नागपुर दक्कन |
पूर्वी तट
पश्चिमी तट
|
प्रायद्वीपीय पठार एक मेज की आकृति वाला स्थल है जो पुराने क्रिस्टलीय आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से बना है। यहाँ उष्णकटिबंधीय सवाना प्रकारकी जलवायु है।
अरावली
भारत के प्राचीनतम् पहाडियां 600 मिलीयन से 570 मिलीयन वर्ष पुरानी है। अरावली को सबसे ऊँची चोटी गुरू शिखर (1722 मी) है. अरावली वलित पर्वत का उदाहरण है.
राजस्थान का एकमात्र पहाड़ी पर्यटन स्थल’माउन्ट आबू’ अरावली में स्थित है.
भारतीय मरुस्थल
अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर थार का मरुस्थल स्थित है। यह बालू के टिब्बों से बँका एक तरंगित मैदान है। यह विश्व का सबसे घना बसा मरुस्थल है.
ध्यान रखें देश में बंजर भूमि के अधीन सर्वाधिक क्षेत्र राजस्थान में आता है.
विध्यांचल
नर्मदा नदी के समान्तर स्थित पर्वत श्रृंखला है.
इस श्रृंखला के अन्तर्गत विध्य, भारनेर व कैमूर पहाड़ियाँ आती है। यह पर्वत दक्कन के पठार को गंगा के मैदान से अलग करता है।
सतपुड़ा
पश्चिमी सतपुड़ा पहाड़ियाँ नर्मदा व तापी के मध्य स्थित है। इन पहाड़ियों पर ताप्ती नदी का उद्गम स्थल है। सबसे ऊँची चोटी धूपगढ़ है। यहा •पर स्थित पंचमढ़ी (पहाड़ी पर्यटन स्थल) को सतपुड़ा की रानी कहा जाता है। महादेव व मैकाल पहाड़ियां:-मैकाल पहाड़ियों के पूर्व में स्थित है।
पश्चिम घाट / सहयाद्रि पहाड़ियां / सहापर्वतम
यह पश्चिम तट के समानांतर स्थित पहाडियां है दमन से कन्याकुमारी तक इन पहाड़ियों का विस्तार है। पश्चिमी घाट को यूनिस्कों ने विश्व विरासत स्थल’ का दर्जा प्रदान किया है। इसके अलावा ‘ताप स्थल’ का दर्जा भी सहयाद्रि को दिया गया है। उत्तर से दक्षिण की ओर इन पहाड़ियों की ऊंचाई बढ़ती है। सबसे ऊंची चोटियां है- अनाई मुडी (2695 मी.) और डोडा बेटा (2637 मी.)। पश्चिम घाट के अन्तर्गत अनेक पहाड़ी श्रेणियाँ आती है। उत्तर से दक्षिण की दिशा में पहाड़ियों का क्रम निम्न है-अजन्ता, सतमल, निर्मल, बालघाट, हरिशचन्द्र (सभी महाराष्ट्र में स्थित है) व बाबा बुदन पहाडियों (कर्नाटक).
दरे
थालघाट भोरघाट पालघाट
सिन कोट |
जोड़ने वाले स्थल
नासिक व मुंबई मुंबई व पुणे कोचिन व कोयम्बटूर (केरल व तमिलनाडु) (नीलगिरी और अन्नामलाई पहाडियों में मध्य ) त्रिवेंद्रम व मदुरै (केरल व तमिलनाडु) |
पालघाट दरें के दक्षिण में पश्चिम घाट की तीन पहाड़ियाँ है-
अन्नामलाई पहाड़ियों पर दक्षिण भारत की सबसे ऊँची चोटी अनाईमुड़ी (2695 मी) और पहाड़ी पर्यटन स्थल मन्नार (केरल) स्थित है। इलाइची/कार्डामम पहाडियां केरल और तमिलनाडु राज्यों की सीमाओं पर स्थित है।
कुड़ईकनाल (तमिलनाडु) पहाड़ी पर्यटन स्थल पलनी पहाड़ियों पर स्थित है।
पूर्वी घाट
पूर्वी घाट ओड़िशा से तमिलनाडु तक फैला है। जिसका विस्तार पूर्वी समुद्री तटीय मैदान के समानान्तर महानदी घाटी से दक्षिण में नीलगिरि तक दक्षिण पूर्वी दिशा में स्थित है। इसकी सबसे ऊँची चोटी जिन्दागढ़ (1690 मी.) हैं.
पूर्वी घाट लगातार नहीं बल्कि अनियमित है। ओडिशा में महेंद्रगिरि, आन्ध्र प्रदेश में नल्लामल्ला, नालकोंडा समूह, वेलिकोंडा, पलकोंडा, शेषचलम और तमिलनाडु में अन्नामलाई, पंचमलाई, शेवराय, वेलगिरि पूर्वी घाट की प्रमुख पहाडियां है। याद रखें-आन्ध्र प्रदेश का प्रसिद्ध तिरूपति मंदिर तिरूमल पहाड़ी (शेषचलम पहाड़ियों का हिस्सा) में स्थित है।
नीलगिरी पहाड़ियां (तमिलनाडु और केरल)
पूर्वी घाट एवं पश्चिमी घाट को जोड़ने वाली इन पहाड़ियों को नीला पहाड़/ (पहाड़ की रानी) भी कहा जाता है। उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन या शोला वन अवस्थित है।
नीलगिरी पहाड़ियों की सबसे ऊँची चोटी, डोडाबेटा (2637 मी०) है। ऊँटी/उद्गादमण्डलम पहाड़ी पर्यटन स्थल स्थित है जो चाय के बागानों के लिए प्रसिद्ध है। नीलकुरिंजी फूल इन पहाड़ी पर 12 वर्ष में एक बार खिलता है। याद रखें नीलगिरि पहाड़ों में तोड़ा जनजातीय समूह प्रमुख रूप से पाया जाता है।
पठार (Plateau)
मालवा का पठार:- मुख्यत: प्रदेश में स्थित हैं एवं यह पूर्ण रूप से काली मिट्टी का ढ़का हुआ उपजाऊ क्षेत्र है। यह अरावली एवं विघ्य श्रृंखलाओं के मध्य अवस्थित है।
छोटा नागपुर का पठार:- खनिज सम्पदा के आधार पर भारत का सर्वाधिक धनी क्षेत्र है, महत्वपूर्ण खनिज, जो इस पठार पर पाये जाते हैं, लोहा, कोयला, यूरेनियम, अभ्रक आदि। इसे भारत का रूर’ कहा जाता है। छोटा नागपुर की सबसे ऊंची चोटी का नाम पारसनाथ है।
यह पठार आद्यमहाकल्पी ग्रेनाइट और नाइस चट्टानों से निर्मित है। पठार का विस्तार झारखण्ड पश्चिम बंगाल, ओड़िशा व छत्तीसगढ़ राज्यों में है।
दक्कन का पठार
प्रायद्वीपीय पठार की एक विशेषता यहाँ पायी जाने वाली काली मृदा है, जिसे ‘ दक्कन ट्रैप’ के नाम से भी जाना जाता है। क्रिटैशियस युग के दौरान अत्यधिक ज्वालामुखी उद्गार से दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ। मुख्यतः महाराष्ट्र, कर्नाटक तेलांगना, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में पठार का विस्तार है। यह भारत का सबसे स्थिर पठार है। दक्कन के पठार की ऊंचाई क्रमशः उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ती है।
यह त्रिभुजीय आकार का पठार है। इसके उत्तर में सतपुडा, पूर्व में पूर्वी घाट और पश्चिम में सहयाद्री स्थित है।
मेघालय का पठार
यह प्रायद्वीपीय दक्कन पठार का विस्तार है।
ध्यान रखें-दण्डकारण्य क्षेत्र ओड़िशा, छत्तीशगढ़ और आन्ध्र प्रदेश में फैला हुआ है। देश का सबसे ऊँचाई पर स्थित लद्दाख का पठार है।
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